मन क्योँ बावरा सा लागे रे आज,
हवा मेँ भी फैली इक अलग सी बहार।
नैन भी चाहत के भँवर मेँ लगे,
क्योँ रोशनी को भी चढ़ा है इक खुमार॥
खुशियोँ की चादर बिछ रही है फिर,
किसका है इस जिंदगी को इँतजार- 1
वो काली रातेँ बीत चुकी हैँ,
नया सवेरा आ रहा इस बार।
ये काला अँधेरा भी छँट जाएगा,
आ रही कोमल झरने की धार॥
खुशियोँ की चादर बिछ रही है फिर,
किसका है इस जिंदगी को इँतजार- 2
अब नहीँ जिएँगे लेकर ये बोझ,
रोक लेँगे ये बुराई की मार।
तैयार हैँ गौरव के साथ,
हम हटाने हर अँधेरे का भार॥
खुशियोँ की चादर बिछ रही है फिर,
किसका है इस जिंदगी को इँतजार- 3
25अप्रैल2012
हवा मेँ भी फैली इक अलग सी बहार।
नैन भी चाहत के भँवर मेँ लगे,
क्योँ रोशनी को भी चढ़ा है इक खुमार॥
खुशियोँ की चादर बिछ रही है फिर,
किसका है इस जिंदगी को इँतजार- 1
वो काली रातेँ बीत चुकी हैँ,
नया सवेरा आ रहा इस बार।
ये काला अँधेरा भी छँट जाएगा,
आ रही कोमल झरने की धार॥
खुशियोँ की चादर बिछ रही है फिर,
किसका है इस जिंदगी को इँतजार- 2
अब नहीँ जिएँगे लेकर ये बोझ,
रोक लेँगे ये बुराई की मार।
तैयार हैँ गौरव के साथ,
हम हटाने हर अँधेरे का भार॥
खुशियोँ की चादर बिछ रही है फिर,
किसका है इस जिंदगी को इँतजार- 3
25अप्रैल2012